आँखों के सामने
सब कुछ काली रात की
तरह सूनसान।
बगल में कुछ यादों को दबाए हुए,
ना जाने उनमें दुःखों का भार अधिक है
या सुखों का।
काश कोई इसका मोल कर पाता।
आज अकेले वो,
किस प्रकार काली रात को
जगाने की कोशिश कर रहा है।
उसे पता है
वह अकेला है,
मगर किसी की तलाश या पुकारना
अब भी नहीं छोड़ा।
मगर उसे इसकी क्या जरूरत?
अगर किसी के आने से उजाला
उत्पन्न हो जाता,
तो आज इतना अंधेरा ही क्यों होता?
जो वो उस अंधेरे से
खेल रहा है।
No comments:
Post a Comment