Monday, June 21, 2021

किसी और से मगर अब अकेले खड़ा हूँ

वो कलम से लिखतीं मगर भूल जती है
एक पल के लिये वो कोई और नही अकेले दबोची हुई नामुमकिं है
जिसका आज और कल किसी और ने सजोया है
जिसके बनाये गये लकीरों में जीवन का लक्ष्य तलास रही है

वोही सपनें जिसको जीना उसको नही उसके अंगों से निकले तनो को है।

लेकिन वो तने आज बड़े हो रहे है , ये भी समझ रहे है
धरती की ताकत को, हवाओं के झटकों को
मा के सहारे तो वो टिके है
जो उसको सहारा दिया वो भी
पानी खाद देना चाहता नही
अब ,
उसको अकेले ही धरती के
अच्छे-बुरे रुप का सामना करना है

वो आज मुर्झाई हुई लग रही
है लगता है उसके हिस्से पे कोई और वृक्ष का रोपण हुआ है
वो भी फलदार वृक्ष का
मुझे डर है की कही इसको
उखाड़ फेंकने की साजीस तो
नही चल रही
जिस वृक्ष का रोपण इतने नजाकत के साथ हुआ उसको कोई कैसे काट सकता है
मै भी नही यकिन कर सकता

कुछ दिन बाद येही हुआ जिसका यकिन ना था
पानी देना बंद था ही अब
उसको उखाड़ फेका गया
मगत भाग्य को कौन रोक सकता है ,
उसको दुबार उगने के लिये जरिया मिल गया जहा फेका गया वहा जल और प्रकाश की कमी ना है

फिर से उदित होने लगी
अब किसी का डर नही है उसको ,
उसके तने भी मजबुत हो चुके हैं वो डट कर मुकाबला करेगे धरती की बुरी ताकत का


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