Wednesday, April 23, 2025

“मौन उदासी का चाँद” The Moon of Silent Sorrow

Hindi 
सब तरफ अँधेरा हो जाए और सब कुछ उदासी से भरा हो,
चाँद हो मगर उदासी से भरा हुआ,
नींद हो मगर किसी उदासी से भारी,
और दिल... वो भी चुपचाप रोता रहे बिना किसी आवाज़ के।

English

When darkness surrounds everything and all is steeped in sorrow,
The moon shines but is drenched in melancholy,
Sleep arrives but carries the weight of a silent sadness,
And the heart… quietly weeps without making a sound.


Saturday, April 12, 2025

आप एक अच्छे इंसान हो

मैं आज घर से निकला ही था कि बारिश की संभावना ने मुझे नीरस कर दिया। मुझे आज अपने एक दोस्त से मिलने जाना था। मिलने क्यों? ये सवाल आपके मन में जरूर उठा होगा।

हुआ ये कि मेरी दोस्त की उसके पति के साथ कुछ दिनों से दिक्कतें चल रही थीं। उसका पति कुछ ज्यादा ही शांत जैसा हो गया है, और उसकी सुस्ती इतनी बढ़ गई है कि लगता ही नहीं वह फिर से उठ खड़ा हो पाएगा।

हालांकि मैं उसके पति से कुछ साल पहले मिल चुका हूँ, सही समय याद नहीं। जब मिला था, तो वह बहुत हंसमुख और जिज्ञासु व्यक्ति था। लेकिन जब उसने आज मुझे उसकी एक वीडियो दिखाई, तो वह मुझे बिल्कुल अलग लगा।

उस रात बारिश थमी नहीं। और न ही मेरी बेचैनी।

मैंने खिड़की से बाहर देखा—गुलमोहर का पेड़ भीगी टहनियों के साथ थरथरा रहा था, जैसे उसकी भी कोई याद उसमें कांप रही हो। मैंने उसे एक मैसेज किया, बस इतना—
"तुम थक सकती हो। पर टूटना मत। अगर कुछ कह सको, तो कह देना। मैं सुनने के लिए यहीं हूँ।"

कुछ देर बाद उसका जवाब आया—
"कभी-कभी कहना भी डराता है। क्योंकि जब दिल टूटता है, आवाज़ भी कांपती है।"

अगली सुबह मैं फिर उनके घर गया।

वो इस बार मुझे देखकर मुस्कुराई नहीं। आँखें सूनी थीं, बाल खुले हुए, और होंठ—बिल्कुल वैसे जैसे कोई ग़ज़ल बीच में छूट गई हो।

"वो..." उसने कहा, "रात को बहुत रोया। पर मुझसे कुछ नहीं कहा।"

"क्या तुम अब भी उससे उतना ही प्यार करती हो?" मैंने पूछ लिया, हिम्मत करके।

उसने मेरी ओर देखा, और इतना कहा,
"प्यार कम नहीं होता। बस कभी-कभी वो जिस्म नहीं, साया बन जाता है।"

मैं कुछ पल उसके सामने खामोश बैठा रहा। फिर कहा,
"और अगर वो साया भी छूट जाए?"

वो काँप गई।
"तो मैं उसके साथ ही धुंध में खो जाऊंगी..."

उस वक़्त मुझे लगने लगा कि शायद मेरी मोहब्बत से बढ़कर उसकी वफ़ा है।

मैंने धीरे से उसका हाथ पकड़कर कहा,
"तुम्हें टूटते देखना अब मुझसे नहीं होता। या तो उसे बचा लो... या खुद को।"

वो कुछ कहने ही वाली थी, तभी ऊपर से एक धीमी-सी आहट आई—उसका पति, पहली बार बिस्तर से उठकर सीढ़ियों से नीचे आ रहा था।

उसकी चाल धीमी थी, पर आँखों में कुछ था... जैसे भीतर से कोई लौ दोबारा जल रही हो।

वो हमारे पास आकर रुका।
मुझे देखा। फिर उसे देखा। और बहुत धीमे से कहा,
"माफ़ कर देना... मैं तुम्हें अकेले छोड़ आया था। पर अब लौट आया हूँ।"

उसकी आँखों से आँसू टपकने लगे, और वो बस वहीं खड़ी रही—हिली तक नहीं।

मैंने उठकर दरवाज़े की तरफ़ रुख किया।
उसने मेरा हाथ थामा, बहुत हल्के से...

"तुम्हारे हिस्से की मोहब्बत मैंने रख ली है," उसने कहा।
"पर तुम्हारी ख़ामोशी... वो हमेशा मेरे साथ रहेगी।"

कुछ मोहब्बतें मुकम्मल नहीं होतीं।
पर वो अधूरी रहकर भी हमें पूरा कर जाती हैं।


Ink & Iron


In silence you sit, yet storms brew within,
A warrior with books where swords should have been.
Eyes on the sky, but feet in the dust,
Chasing a dream with unwavering trust.

The world may not see your daily strife,
But you’re carving your fate with a disciplined knife.
You fall, you rise, and grind some more,
While others sleep, you open one more door.

Your thoughts—like lightning, your will—like steel,
Each line you write, each fact you feel.
A thousand doubts, yet still you stand,
With courage clenched tight in your trembling hand.

You're not just chasing a rank or a post,
You're shaping a future, and that's worth the most.
So let this be known when they write your name,
You lit your path with your own burning flame.



Tuesday, April 8, 2025

सर्दी की पहली चाय“कुछ रिश्ते मौसम जैसे होते हैं—कभी बरसते हैं, कभी जम जाते हैं।"

Chapter 4: 
सुबह थी, लेकिन दिल में रात सी बेचैनी थी।
वो सर्दी की पहली सुबह थी जब कमरे की खिड़की से बाहर सफेद चादर सी बर्फ फैली थी।
लेकिन उस सफेदी में भी मेरे अंदर कुछ राख हो रहा था।

मैंने जैसे ही फोन उठाया, आदतन उसका चैट खोला—“आर्या”।
कोई नीली टिक नहीं,
कोई "ऑनलाइन" नहीं,
कोई 'गुड मॉर्निंग' नहीं।

पहली बार ऐसा हुआ था।

दिल ने कहा—शायद सो गई होगी,
दिमाग ने कहा—कुछ ठीक नहीं।

मैंने लिखा:
"आज बर्फ गिरी है, चाय बनाई है… तुम्हारे बिना फीकी लग रही है।"

कोई जवाब नहीं।

दोपहर बीती, शाम हुई, फिर रात।
और उस रात, पहली बार मेरी नींद नहीं आई… क्यूंकि मेरी नींद की वजह ने ही जवाब देना बंद कर दिया था।

तीन दिन बीत गए।
मैं हर घंटे उसका चैट खोलता।
हर बार वहीं खालीपन, वहीं चुप्पी।

मैंने लिखा:
"आर्या, कुछ भी हो… बस एक बार बता दो कि तुम ठीक हो। नाराज़ हो, तो बोलो… पर यूँ मत जाओ।"

उसका आख़िरी मैसेज अभी भी मेरी स्क्रीन पर था:
"कभी-कभी बातों से भी मोहब्बत डर जाती है…"

मुझे लगा था, ये ठंड सिर्फ बाहर गिर रही है,
पर असल बर्फ तो भीतर जमने लगी थी।

वो सर्दी, वो पहली बर्फ, वो चाय...
सब अधूरा था।
हर चीज़ जैसे अपनी कहानी खो चुकी थी।

मैंने अपनी डायरी खोली, जिसमें मैंने उसका नाम लिखा था।
उसके नीचे एक लाइन और लिख दी:
“जिन्हें सिर्फ महसूस किया गया हो, वो जब छोड़ते हैं… तो चीख भी नहीं सुनाई देती।”

तब मुझे समझ आया—
कुछ लोग बर्फ जैसे होते हैं।
वे बहुत खूबसूरत लगते हैं,
पर जब हाथ में लेने की कोशिश करो…
तो पिघल जाते हैं।

रात की बातें और गहरे जज़्बात“कुछ रातें नींद नहीं मांगतीं... सिर्फ साथ मांगती हैं।”

 Chapter 3: 

रातें हमारी अपनी थीं।
दिन भर दुनिया से लड़ने के बाद हम उन सन्नाटों में एक-दूसरे की पनाह बनते थे।
जब पूरी दुनिया सो जाती थी,
हमारी बातों की चुप आवाज़ें जागती थीं।

रात 11 बजे के बाद उसका पहला मैसेज आता था,
"आ गई हूँ। बोलो, आज किस ख्वाब की बात करोगे?"

और मैं मुस्कुरा देता था।

वो मेरी नींदों की चोर थी—जो हर रात मुझे अपने अल्फाज़ों में उलझा कर रख देती थी।
कभी वो बचपन की बातें करती, कभी अपने डर खोलती।
कभी कहती,
"तुम होते तो शायद मैं और मज़बूत हो जाती…"
और मैं सोचता,
"मैं होता, तो तुम टूटने ही नहीं देती।"

एक रात उसने मुझसे पूछा:
"तुम्हें क्या चाहिए मुझसे?"

मैंने बिना सोचे लिखा:
"तेरी खामोशी... जब तू कुछ नहीं कहती, तब भी सब कह देती है।"

उस पल स्क्रीन पर टाइपिंग चालू रही,
फिर बंद हो गई।
कोई जवाब नहीं आया।

पर मुझे समझ आ गया,
कुछ सवालों के जवाब ख़ामोशी होती है।
फिर एक और रात आई। वो थोड़ी अलग थी।

उसने लिखा:
"अगर मैं एक दिन यूं ही गायब हो जाऊं, तो तुम मुझे ढूंढोगे?"

मैं चौंका।
दिल हल्का-सा काँपा।

"तुम कोई जगह नहीं हो जो ढूंढ ली जाओ। तुम तो आदत बन चुकी हो... और आदतें कहाँ छूटती हैं?"

उसने फिर लिखा:
"तो क्या होगा अगर तुम्हारी आदत ही तुमसे दूर जाने की ठान ले?"

मैंने मज़ाक में बात मोड़ने की कोशिश की:
"तब मैं तुम्हें अपनी सबसे प्यारी भूल बना दूंगा… जिसे हर रोज़ याद किया जाए।"

पर उस रात, पहली बार, उसने "गुड नाइट" नहीं लिखा।
फोन स्क्रीन ब्लैक रह गई,
पर दिल में कुछ भारी-सा जलता रहा।
अब हर रात की बात में कुछ अधूरा जुड़ने लगा।
उसकी बातें कम होने लगीं, मेरी बेचैनी बढ़ने लगी।

वो कहती थी,
"तुम मुझसे बहुत जुड़ गए हो। क्या करोगे जब मैं नहीं रहूँगी?"

मैं कहता,
"तुम रहो या ना रहो, पर ये बातें मत छोड़ना…"

उसने सिर्फ एक लाइन भेजी थी उस दिन:
"कभी-कभी बातों से भी मोहब्बत डर जाती है…"



बिना देखे महसूस करना“कभी-कभी आंखें नहीं, अल्फ़ाज़ ज़्यादा देख लेते हैं…

Chapter 2: 

बिना देखे महसूस करना
“कभी-कभी आंखें नहीं, अल्फ़ाज़ ज़्यादा देख लेते हैं…”

आर्या से बातचीत अब हमारी दिनचर्या बन चुकी थी। हम दोनों के दिन की शुरुआत नहीं होती थी जब तक एक-दूसरे को “गुड मॉर्निंग” न कह लें, और रातें तब तक अधूरी रहती थीं जब तक वो एक “सो जाओ अब, सपना देखना मुझसे मिलते हुए” न भेज दे।

हमने वादा किया था कि हम एक-दूसरे को कभी नहीं देखेंगे।
ना वीडियो कॉल, ना फोटो।
मकसद ये था कि मोहब्बत की जड़ों में चेहरा नहीं, एहसास हो।
हम इस दुनिया की बनावटी चमक से बचना चाहते थे।

और यक़ीन मानो Avi, मैं उसे देखे बगैर भी जानने लगा था।

वो जब उदास होती थी, तो उसके मैसेज छोटे हो जाते थे।
जब खुश होती थी, तो एक ही लाइन में तीन-तीन इमोजी लगा देती थी।
वो जब थकी होती थी, तो "हूँ..." लिखती थी—और मैं समझ जाता था, अब उसे बस चुपचाप साथ चाहिए।

एक बार मैंने उससे कहा,
"तुम्हारी आवाज़ कैसी है?"

उसने लिखा,
"पढ़ लो मुझे, वही मेरी आवाज़ है।"

उस जवाब ने कुछ देर के लिए मुझे ख़ामोश कर दिया।
कितना गहरा था वो एहसास—कि जब कोई खुद को सिर्फ लफ़्ज़ों में ढाल दे, वो सच्चा हो जाता है।

हम मौसमों की बातें करते, बीते हुए लम्हों की बातें करते, और उस दुनिया की कल्पना करते जिसे हमने साथ में नहीं देखा था—लेकिन महसूस किया था।

उसने मुझे बताया कि उसे पहाड़ पसंद हैं, पर वो कभी वहां नहीं जा पाई।
मैंने कहा,
"जब हम मिलेंगे, तो सबसे पहले किसी बर्फीले शहर चलेंगे। वहां तुम बर्फ में हाथ डालना और मैं तुम्हारे गालों पर देखूंगा कि तुम कितना खुश हो।"

उसने जवाब दिया,
"मैं तुम्हारे साथ बर्फ को महसूस करना चाहती हूँ, देखने का शौक अब नहीं रहा..."

Avi, ये कोई आम बात नहीं थी।
ये एक ऐसा इज़हार था जिसमें देखने की ज़रूरत नहीं थी, बस साथ महसूस करने की चाह थी।

हमने कभी एक-दूसरे के "रियल" नाम नहीं पूछे।
न ही एड्रेस, न कोई सोशल मीडिया।
सिर्फ एक कोड था जो हम एक-दूसरे के लिए इस्तेमाल करते थे—“जुनून” और “चुप्पी”
मैं उसका जुनून था, और वो मेरी चुप्पी।

उसे मेरी लंबी बातें पसंद थीं।
मुझे उसकी छोटी ख़ामोशियाँ।

हम एक-दूसरे के वजूद को बिना देखे छूने लगे थे।
बिना स्पर्श के एक स्पर्श...
बिना तस्वीर के एक चेहरा...


बर्फ की चादर

 Chapter 1: पहली मुलाकात

“कभी-कभी कुछ अजनबी इतनी जल्दी अपने लगने लगते हैं कि हमें खुद पर शक होने लगता है…”

वो दिसंबर की एक आम शाम थी, लेकिन मेरे भीतर कुछ खास चल रहा था। बाहर सर्दी का आलम था और अंदर दिल में एक अजीब-सी बेचैनी। मैं लैपटॉप के सामने बैठा था, अनजाने में किसी लेख पर क्लिक किया और वहाँ नीचे एक कॉमेंट पढ़ा—जिसमें किसी ने लिखा था,
"कभी किसी को बिना देखे उससे जुड़ जाना, सबसे बड़ी हिम्मत होती है।"

उस कॉमेंट का नाम था—आर्या।

बस... वहीं से सब शुरू हुआ।
नाम जाना-पहचाना नहीं था, लेकिन उस एक लाइन ने मेरे भीतर कोई पुरानी तार छेड़ दी थी। मैं जवाब देने से खुद को रोक नहीं पाया,
"और कभी-कभी सबसे बड़ी बेवकूफ़ी भी…"

कुछ ही मिनटों में जवाब आया,
"बेवकूफ़ियाँ ही तो दिल से जुड़ी होती हैं। दिमाग का क्या, वो हर चीज़ में लॉजिक ढूंढता है।"

मैं मुस्कुरा दिया।

पहली बार था जब किसी अजनबी की बात ने इतनी गर्माहट दी थी इस ठंडी सर्दी में।
हमारी बातों ने सिलसिला पकड़ा—धीरे-धीरे, लेकिन बहुत गहराई से। दिन नहीं, हम रातों में ज़्यादा जुड़े। शायद इसलिए क्योंकि रातें भी थोड़ी सच्ची होती हैं।

वो किताबें पढ़ती थी, गुलज़ार को पसंद करती थी, और बर्फबारी की दीवानी थी।
मैं उसे बताता था कि मैं भी अकेलेपन से बातें करता हूँ, पुराने गाने सुनता हूँ और चुपचाप खिड़की के पास बैठा चाय पीता हूँ।
हम अलग-अलग शहरों से थे—फासले असली थे, लेकिन जज़्बात? वो तो हर मैसेज में झलकते थे।

एक रात उसने लिखा,
"तुम्हें कभी बर्फ देखनी है तो मेरे शहर आना। यहाँ की सर्दियाँ बहुत बोलती हैं।"

मैंने जवाब दिया,
"और तुम्हारा साथ हो तो शायद मैं बर्फ से डरना छोड़ दूँ…"

वो हँसी।
और उस हँसी में मैं खो गया।

हमने तय किया था—ना कोई फोटो शेयर करेंगे, ना ही कॉल करेंगे।
बस शब्दों में एक-दूसरे को जानेंगे।
ये अजीब-सी डील थी, लेकिन उसमें एक मासूमियत थी।
एक भरोसा।

मुझे नहीं पता था कि मैं किसी अनजानी आवाज़ के बिना, किसी अनदेखे चेहरे के पीछे इतना कुछ महसूस कर सकता हूँ।
पर शायद यही तो मोहब्बत होती है—कभी-कभी बिना किसी शक्ल के भी दिल भर जाता है।

उस रात मैंने अपनी डायरी में पहली बार उसका नाम लिखा—आर्या
और नीचे लिखा:
"शायद ये सर्दी कुछ नया सिखाएगी…"



“मौन उदासी का चाँद” The Moon of Silent Sorrow

Hindi  सब तरफ अँधेरा हो जाए और सब कुछ उदासी से भरा हो, चाँद हो मगर उदासी से भरा हुआ, नींद हो मगर किसी उदासी से भारी, और दिल... वो भी चुपचाप ...