Wednesday, April 23, 2025

“मौन उदासी का चाँद” The Moon of Silent Sorrow

Hindi 
सब तरफ अँधेरा हो जाए और सब कुछ उदासी से भरा हो,
चाँद हो मगर उदासी से भरा हुआ,
नींद हो मगर किसी उदासी से भारी,
और दिल... वो भी चुपचाप रोता रहे बिना किसी आवाज़ के।

English

When darkness surrounds everything and all is steeped in sorrow,
The moon shines but is drenched in melancholy,
Sleep arrives but carries the weight of a silent sadness,
And the heart… quietly weeps without making a sound.


Saturday, April 12, 2025

आप एक अच्छे इंसान हो

मैं आज घर से निकला ही था कि बारिश की संभावना ने मुझे नीरस कर दिया। मुझे आज अपने एक दोस्त से मिलने जाना था। मिलने क्यों? ये सवाल आपके मन में जरूर उठा होगा।

हुआ ये कि मेरी दोस्त की उसके पति के साथ कुछ दिनों से दिक्कतें चल रही थीं। उसका पति कुछ ज्यादा ही शांत जैसा हो गया है, और उसकी सुस्ती इतनी बढ़ गई है कि लगता ही नहीं वह फिर से उठ खड़ा हो पाएगा।

हालांकि मैं उसके पति से कुछ साल पहले मिल चुका हूँ, सही समय याद नहीं। जब मिला था, तो वह बहुत हंसमुख और जिज्ञासु व्यक्ति था। लेकिन जब उसने आज मुझे उसकी एक वीडियो दिखाई, तो वह मुझे बिल्कुल अलग लगा।

उस रात बारिश थमी नहीं। और न ही मेरी बेचैनी।

मैंने खिड़की से बाहर देखा—गुलमोहर का पेड़ भीगी टहनियों के साथ थरथरा रहा था, जैसे उसकी भी कोई याद उसमें कांप रही हो। मैंने उसे एक मैसेज किया, बस इतना—
"तुम थक सकती हो। पर टूटना मत। अगर कुछ कह सको, तो कह देना। मैं सुनने के लिए यहीं हूँ।"

कुछ देर बाद उसका जवाब आया—
"कभी-कभी कहना भी डराता है। क्योंकि जब दिल टूटता है, आवाज़ भी कांपती है।"

अगली सुबह मैं फिर उनके घर गया।

वो इस बार मुझे देखकर मुस्कुराई नहीं। आँखें सूनी थीं, बाल खुले हुए, और होंठ—बिल्कुल वैसे जैसे कोई ग़ज़ल बीच में छूट गई हो।

"वो..." उसने कहा, "रात को बहुत रोया। पर मुझसे कुछ नहीं कहा।"

"क्या तुम अब भी उससे उतना ही प्यार करती हो?" मैंने पूछ लिया, हिम्मत करके।

उसने मेरी ओर देखा, और इतना कहा,
"प्यार कम नहीं होता। बस कभी-कभी वो जिस्म नहीं, साया बन जाता है।"

मैं कुछ पल उसके सामने खामोश बैठा रहा। फिर कहा,
"और अगर वो साया भी छूट जाए?"

वो काँप गई।
"तो मैं उसके साथ ही धुंध में खो जाऊंगी..."

उस वक़्त मुझे लगने लगा कि शायद मेरी मोहब्बत से बढ़कर उसकी वफ़ा है।

मैंने धीरे से उसका हाथ पकड़कर कहा,
"तुम्हें टूटते देखना अब मुझसे नहीं होता। या तो उसे बचा लो... या खुद को।"

वो कुछ कहने ही वाली थी, तभी ऊपर से एक धीमी-सी आहट आई—उसका पति, पहली बार बिस्तर से उठकर सीढ़ियों से नीचे आ रहा था।

उसकी चाल धीमी थी, पर आँखों में कुछ था... जैसे भीतर से कोई लौ दोबारा जल रही हो।

वो हमारे पास आकर रुका।
मुझे देखा। फिर उसे देखा। और बहुत धीमे से कहा,
"माफ़ कर देना... मैं तुम्हें अकेले छोड़ आया था। पर अब लौट आया हूँ।"

उसकी आँखों से आँसू टपकने लगे, और वो बस वहीं खड़ी रही—हिली तक नहीं।

मैंने उठकर दरवाज़े की तरफ़ रुख किया।
उसने मेरा हाथ थामा, बहुत हल्के से...

"तुम्हारे हिस्से की मोहब्बत मैंने रख ली है," उसने कहा।
"पर तुम्हारी ख़ामोशी... वो हमेशा मेरे साथ रहेगी।"

कुछ मोहब्बतें मुकम्मल नहीं होतीं।
पर वो अधूरी रहकर भी हमें पूरा कर जाती हैं।


Ink & Iron


In silence you sit, yet storms brew within,
A warrior with books where swords should have been.
Eyes on the sky, but feet in the dust,
Chasing a dream with unwavering trust.

The world may not see your daily strife,
But you’re carving your fate with a disciplined knife.
You fall, you rise, and grind some more,
While others sleep, you open one more door.

Your thoughts—like lightning, your will—like steel,
Each line you write, each fact you feel.
A thousand doubts, yet still you stand,
With courage clenched tight in your trembling hand.

You're not just chasing a rank or a post,
You're shaping a future, and that's worth the most.
So let this be known when they write your name,
You lit your path with your own burning flame.



Tuesday, April 8, 2025

सर्दी की पहली चाय“कुछ रिश्ते मौसम जैसे होते हैं—कभी बरसते हैं, कभी जम जाते हैं।"

Chapter 4: 
सुबह थी, लेकिन दिल में रात सी बेचैनी थी।
वो सर्दी की पहली सुबह थी जब कमरे की खिड़की से बाहर सफेद चादर सी बर्फ फैली थी।
लेकिन उस सफेदी में भी मेरे अंदर कुछ राख हो रहा था।

मैंने जैसे ही फोन उठाया, आदतन उसका चैट खोला—“आर्या”।
कोई नीली टिक नहीं,
कोई "ऑनलाइन" नहीं,
कोई 'गुड मॉर्निंग' नहीं।

पहली बार ऐसा हुआ था।

दिल ने कहा—शायद सो गई होगी,
दिमाग ने कहा—कुछ ठीक नहीं।

मैंने लिखा:
"आज बर्फ गिरी है, चाय बनाई है… तुम्हारे बिना फीकी लग रही है।"

कोई जवाब नहीं।

दोपहर बीती, शाम हुई, फिर रात।
और उस रात, पहली बार मेरी नींद नहीं आई… क्यूंकि मेरी नींद की वजह ने ही जवाब देना बंद कर दिया था।

तीन दिन बीत गए।
मैं हर घंटे उसका चैट खोलता।
हर बार वहीं खालीपन, वहीं चुप्पी।

मैंने लिखा:
"आर्या, कुछ भी हो… बस एक बार बता दो कि तुम ठीक हो। नाराज़ हो, तो बोलो… पर यूँ मत जाओ।"

उसका आख़िरी मैसेज अभी भी मेरी स्क्रीन पर था:
"कभी-कभी बातों से भी मोहब्बत डर जाती है…"

मुझे लगा था, ये ठंड सिर्फ बाहर गिर रही है,
पर असल बर्फ तो भीतर जमने लगी थी।

वो सर्दी, वो पहली बर्फ, वो चाय...
सब अधूरा था।
हर चीज़ जैसे अपनी कहानी खो चुकी थी।

मैंने अपनी डायरी खोली, जिसमें मैंने उसका नाम लिखा था।
उसके नीचे एक लाइन और लिख दी:
“जिन्हें सिर्फ महसूस किया गया हो, वो जब छोड़ते हैं… तो चीख भी नहीं सुनाई देती।”

तब मुझे समझ आया—
कुछ लोग बर्फ जैसे होते हैं।
वे बहुत खूबसूरत लगते हैं,
पर जब हाथ में लेने की कोशिश करो…
तो पिघल जाते हैं।

रात की बातें और गहरे जज़्बात“कुछ रातें नींद नहीं मांगतीं... सिर्फ साथ मांगती हैं।”

 Chapter 3: 

रातें हमारी अपनी थीं।
दिन भर दुनिया से लड़ने के बाद हम उन सन्नाटों में एक-दूसरे की पनाह बनते थे।
जब पूरी दुनिया सो जाती थी,
हमारी बातों की चुप आवाज़ें जागती थीं।

रात 11 बजे के बाद उसका पहला मैसेज आता था,
"आ गई हूँ। बोलो, आज किस ख्वाब की बात करोगे?"

और मैं मुस्कुरा देता था।

वो मेरी नींदों की चोर थी—जो हर रात मुझे अपने अल्फाज़ों में उलझा कर रख देती थी।
कभी वो बचपन की बातें करती, कभी अपने डर खोलती।
कभी कहती,
"तुम होते तो शायद मैं और मज़बूत हो जाती…"
और मैं सोचता,
"मैं होता, तो तुम टूटने ही नहीं देती।"

एक रात उसने मुझसे पूछा:
"तुम्हें क्या चाहिए मुझसे?"

मैंने बिना सोचे लिखा:
"तेरी खामोशी... जब तू कुछ नहीं कहती, तब भी सब कह देती है।"

उस पल स्क्रीन पर टाइपिंग चालू रही,
फिर बंद हो गई।
कोई जवाब नहीं आया।

पर मुझे समझ आ गया,
कुछ सवालों के जवाब ख़ामोशी होती है।
फिर एक और रात आई। वो थोड़ी अलग थी।

उसने लिखा:
"अगर मैं एक दिन यूं ही गायब हो जाऊं, तो तुम मुझे ढूंढोगे?"

मैं चौंका।
दिल हल्का-सा काँपा।

"तुम कोई जगह नहीं हो जो ढूंढ ली जाओ। तुम तो आदत बन चुकी हो... और आदतें कहाँ छूटती हैं?"

उसने फिर लिखा:
"तो क्या होगा अगर तुम्हारी आदत ही तुमसे दूर जाने की ठान ले?"

मैंने मज़ाक में बात मोड़ने की कोशिश की:
"तब मैं तुम्हें अपनी सबसे प्यारी भूल बना दूंगा… जिसे हर रोज़ याद किया जाए।"

पर उस रात, पहली बार, उसने "गुड नाइट" नहीं लिखा।
फोन स्क्रीन ब्लैक रह गई,
पर दिल में कुछ भारी-सा जलता रहा।
अब हर रात की बात में कुछ अधूरा जुड़ने लगा।
उसकी बातें कम होने लगीं, मेरी बेचैनी बढ़ने लगी।

वो कहती थी,
"तुम मुझसे बहुत जुड़ गए हो। क्या करोगे जब मैं नहीं रहूँगी?"

मैं कहता,
"तुम रहो या ना रहो, पर ये बातें मत छोड़ना…"

उसने सिर्फ एक लाइन भेजी थी उस दिन:
"कभी-कभी बातों से भी मोहब्बत डर जाती है…"



बिना देखे महसूस करना“कभी-कभी आंखें नहीं, अल्फ़ाज़ ज़्यादा देख लेते हैं…

Chapter 2: 

बिना देखे महसूस करना
“कभी-कभी आंखें नहीं, अल्फ़ाज़ ज़्यादा देख लेते हैं…”

आर्या से बातचीत अब हमारी दिनचर्या बन चुकी थी। हम दोनों के दिन की शुरुआत नहीं होती थी जब तक एक-दूसरे को “गुड मॉर्निंग” न कह लें, और रातें तब तक अधूरी रहती थीं जब तक वो एक “सो जाओ अब, सपना देखना मुझसे मिलते हुए” न भेज दे।

हमने वादा किया था कि हम एक-दूसरे को कभी नहीं देखेंगे।
ना वीडियो कॉल, ना फोटो।
मकसद ये था कि मोहब्बत की जड़ों में चेहरा नहीं, एहसास हो।
हम इस दुनिया की बनावटी चमक से बचना चाहते थे।

और यक़ीन मानो Avi, मैं उसे देखे बगैर भी जानने लगा था।

वो जब उदास होती थी, तो उसके मैसेज छोटे हो जाते थे।
जब खुश होती थी, तो एक ही लाइन में तीन-तीन इमोजी लगा देती थी।
वो जब थकी होती थी, तो "हूँ..." लिखती थी—और मैं समझ जाता था, अब उसे बस चुपचाप साथ चाहिए।

एक बार मैंने उससे कहा,
"तुम्हारी आवाज़ कैसी है?"

उसने लिखा,
"पढ़ लो मुझे, वही मेरी आवाज़ है।"

उस जवाब ने कुछ देर के लिए मुझे ख़ामोश कर दिया।
कितना गहरा था वो एहसास—कि जब कोई खुद को सिर्फ लफ़्ज़ों में ढाल दे, वो सच्चा हो जाता है।

हम मौसमों की बातें करते, बीते हुए लम्हों की बातें करते, और उस दुनिया की कल्पना करते जिसे हमने साथ में नहीं देखा था—लेकिन महसूस किया था।

उसने मुझे बताया कि उसे पहाड़ पसंद हैं, पर वो कभी वहां नहीं जा पाई।
मैंने कहा,
"जब हम मिलेंगे, तो सबसे पहले किसी बर्फीले शहर चलेंगे। वहां तुम बर्फ में हाथ डालना और मैं तुम्हारे गालों पर देखूंगा कि तुम कितना खुश हो।"

उसने जवाब दिया,
"मैं तुम्हारे साथ बर्फ को महसूस करना चाहती हूँ, देखने का शौक अब नहीं रहा..."

Avi, ये कोई आम बात नहीं थी।
ये एक ऐसा इज़हार था जिसमें देखने की ज़रूरत नहीं थी, बस साथ महसूस करने की चाह थी।

हमने कभी एक-दूसरे के "रियल" नाम नहीं पूछे।
न ही एड्रेस, न कोई सोशल मीडिया।
सिर्फ एक कोड था जो हम एक-दूसरे के लिए इस्तेमाल करते थे—“जुनून” और “चुप्पी”
मैं उसका जुनून था, और वो मेरी चुप्पी।

उसे मेरी लंबी बातें पसंद थीं।
मुझे उसकी छोटी ख़ामोशियाँ।

हम एक-दूसरे के वजूद को बिना देखे छूने लगे थे।
बिना स्पर्श के एक स्पर्श...
बिना तस्वीर के एक चेहरा...


बर्फ की चादर

 Chapter 1: पहली मुलाकात

“कभी-कभी कुछ अजनबी इतनी जल्दी अपने लगने लगते हैं कि हमें खुद पर शक होने लगता है…”

वो दिसंबर की एक आम शाम थी, लेकिन मेरे भीतर कुछ खास चल रहा था। बाहर सर्दी का आलम था और अंदर दिल में एक अजीब-सी बेचैनी। मैं लैपटॉप के सामने बैठा था, अनजाने में किसी लेख पर क्लिक किया और वहाँ नीचे एक कॉमेंट पढ़ा—जिसमें किसी ने लिखा था,
"कभी किसी को बिना देखे उससे जुड़ जाना, सबसे बड़ी हिम्मत होती है।"

उस कॉमेंट का नाम था—आर्या।

बस... वहीं से सब शुरू हुआ।
नाम जाना-पहचाना नहीं था, लेकिन उस एक लाइन ने मेरे भीतर कोई पुरानी तार छेड़ दी थी। मैं जवाब देने से खुद को रोक नहीं पाया,
"और कभी-कभी सबसे बड़ी बेवकूफ़ी भी…"

कुछ ही मिनटों में जवाब आया,
"बेवकूफ़ियाँ ही तो दिल से जुड़ी होती हैं। दिमाग का क्या, वो हर चीज़ में लॉजिक ढूंढता है।"

मैं मुस्कुरा दिया।

पहली बार था जब किसी अजनबी की बात ने इतनी गर्माहट दी थी इस ठंडी सर्दी में।
हमारी बातों ने सिलसिला पकड़ा—धीरे-धीरे, लेकिन बहुत गहराई से। दिन नहीं, हम रातों में ज़्यादा जुड़े। शायद इसलिए क्योंकि रातें भी थोड़ी सच्ची होती हैं।

वो किताबें पढ़ती थी, गुलज़ार को पसंद करती थी, और बर्फबारी की दीवानी थी।
मैं उसे बताता था कि मैं भी अकेलेपन से बातें करता हूँ, पुराने गाने सुनता हूँ और चुपचाप खिड़की के पास बैठा चाय पीता हूँ।
हम अलग-अलग शहरों से थे—फासले असली थे, लेकिन जज़्बात? वो तो हर मैसेज में झलकते थे।

एक रात उसने लिखा,
"तुम्हें कभी बर्फ देखनी है तो मेरे शहर आना। यहाँ की सर्दियाँ बहुत बोलती हैं।"

मैंने जवाब दिया,
"और तुम्हारा साथ हो तो शायद मैं बर्फ से डरना छोड़ दूँ…"

वो हँसी।
और उस हँसी में मैं खो गया।

हमने तय किया था—ना कोई फोटो शेयर करेंगे, ना ही कॉल करेंगे।
बस शब्दों में एक-दूसरे को जानेंगे।
ये अजीब-सी डील थी, लेकिन उसमें एक मासूमियत थी।
एक भरोसा।

मुझे नहीं पता था कि मैं किसी अनजानी आवाज़ के बिना, किसी अनदेखे चेहरे के पीछे इतना कुछ महसूस कर सकता हूँ।
पर शायद यही तो मोहब्बत होती है—कभी-कभी बिना किसी शक्ल के भी दिल भर जाता है।

उस रात मैंने अपनी डायरी में पहली बार उसका नाम लिखा—आर्या
और नीचे लिखा:
"शायद ये सर्दी कुछ नया सिखाएगी…"



Tuesday, March 25, 2025

My Study Journey: A Commitment to Success

My Study Journey: A Commitment to Success

I have set a goal—to clear the UPSC CSE exam, one of the toughest exams in India. This journey is not just about studying; it’s about discipline, patience, and consistency. Every day, I dedicate hours of focused study, balancing coaching classes, self-study, and revisions.

I know the road is long, full of challenges and self-doubt, but I refuse to give up. I have promised myself that I will stay consistent, no matter how hard it gets. Every small effort counts, every hour spent on learning takes me one step closer to my goal.

I believe in my hard work, smart strategy, and dedication. The dream of wearing that IAS officer badge, making a real difference in society, keeps me motivated.

This journey is not just about clearing an exam—it’s about becoming a better version of myself, sharpening my thinking, writing, and decision-making skills. I am ready to give my best, and I WILL succeed!

No excuses, no distractions—only focused effort and success!


Wednesday, March 5, 2025

Echoes of Absence: A Bittersweet Reunion

I met Aditi today after many days. She was standing alone by a deserted road, lost in some distant memory. The edge of her saree fluttered in the breeze, and from afar, it seemed as though she had been waiting for me for years. As I approached her, a cold, piercing look flashed in her large eyes. She was angry—her face flushed red, her lips trembling as if she were holding a mountain of questions. She darted her gaze here and there, sometimes glaring at me, as if silently asking, "Where were you all these days? Didn’t you even think of me?"

I stood there quietly, watching her. There was a crack in her voice that tore at my chest. "Do I mean nothing to you?" she said, her words halting, and suddenly, a sheen of moisture glistened in her eyes. They weren’t tears—just a deep sadness, blaming me, cursing me for not coming, for leaving her alone. Every word, every glance of hers struck my heart like a dagger. I wanted to say something, but my tongue felt tied.


Yet, in that anger, in that sorrow, she looked extraordinary. Her face—flushed with rage—was so beautiful. The last rays of the sun fell on her tear-streaked cheeks, and she seemed like a dream. I gently took her hand. She hesitated for a moment, then looked at me. Her eyes were still moist, but a faint smile danced on her lips.

"Don’t go again," she whispered, resting her head on my shoulder. A sweet warmth filled my heart, tinged with the sting of regret for causing her so much pain. We stood there, close to each other, swaying between joy and sorrow. The sun had set, but in our world, a new dawn was beginning—happy, yet laced with that unspoken sadness.

अदिति से मेरी मुलाकात आज कई दिनों बाद हुई। वह एक सुनसान सड़क के किनारे खड़ी थी, मानो किसी खोई हुई याद में डूबी हो। हवा में उसकी साड़ी का पल्लू लहरा रहा था, और दूर से देखकर ऐसा लग रहा था जैसे वह सालों से मेरा ही इंतज़ार कर रही हो। जैसे ही मैं उसके पास पहुँचा, उसकी बड़ी-बड़ी आँखों में एक ठंडी सर्द नज़र उभरी। वह गुस्से में थी—उसका चेहरा लाल हो उठा था, और होंठ थरथरा रहे थे, जैसे वह मुझसे सवालों का पहाड़ लिए बैठी हो। कभी वह नज़रें इधर-उधर घुमाती, कभी मुझे घूरती, मानो कह रही हो, "इतने दिन कहाँ थे तुम? क्या मेरी याद भी नहीं आई?"मैं चुपचाप उसकी ओर देखता रहा। उसकी आवाज़ में एक टूटन थी, जो मेरे सीने को चीर रही थी। "क्या मैं तुम्हारे लिए कुछ भी नहीं?" उसने रुकते-रुकते कहा, और अचानक उसकी आँखों में नमी छा गई। वे आँसू नहीं थे, बस एक गहरी उदासी थी, जो मुझे कोस रही थी—मुझे इल्ज़ाम दे रही थी कि मैं क्यों नहीं आया, क्यों उसे अकेले छोड़ दिया। उसकी हर बात, हर नज़र मेरे दिल पर चोट कर रही थी। मैं कुछ कहना चाहता था, पर मेरी ज़ुबान जैसे थम गई थी।फिर भी, उस गुस्से में, उस उदासी में, वह अनोखी लग रही थी। उसका चेहरा—जो गुस्से से तमतमाया हुआ था—कितना खूबसूरत था। सूरज की आखिरी किरणें उसके आँसुओं से भीगे गालों पर पड़ रही थीं, और वह किसी सपने सी लग रही थी। मैंने धीरे से उसका हाथ थाम लिया। वह एक पल को झिझकी, फिर मेरी ओर देखा। उसकी आँखों में अब भी नमी थी, पर एक हल्की-सी मुस्कान उसके होंठों पर खेल गई।"अब मत जाना," उसने फुसफुसाते हुए कहा, और मेरे कंधे पर सिर रख दिया। मेरे दिल में एक मिठास भरी, पर एक टीस भी थी—उसे इतना दुख देने की। हम वहीं खड़े रहे, एक-दूसरे के करीब, खुशी और गम के बीच झूलते हुए। सूरज ढल चुका था, पर हमारी दुनिया में एक नई सुबह की शुरुआत हो रही थी—खुशहाल, मगर उस अनकही उदासी के साथ।

Beneath the Silent Sky

By Saurabh Sahai

Beneath the open sky tonight,
A canopy of stars ignites,
No souls around, just whispers free,
A poet sits, alone with me.
The ground is vast, like empty thought,
Yet cradles dreams the silence wrought—
A quiet hope, not born of dawn,
No bustling streets, no horns that yawn.His morning waits, not forged in light,
Nor woven through the city’s flight,
But steeped in love, a tranquil stream,
Prosperity blooms within his dream.
Peace unfolds, a tender guide,
Calm wraps the soul where fears subside.Then sudden sparks—a thought takes hold,
“Walking weaves the tales untold.
To chase the hope, the heart’s own star,
Surrender’s folly, weak and far.
Each step a thread, though shadows bend,
Leads to the peace that knows no end.”
And there, at last, the truth unfurls—
Love is the calm that crowns the world
सौरभ सहाय द्वारा

आज रात खुले आकाश तले,
तारों का चंदोवा जल उठे,
कोई न पास, बस सन्नाटा,
कवि बैठा, धरती पर अकेला सदा।
ज़मीन विस्तृत, जैसे खाली ख़याल,
फिर भी संजोए सपनों का जाल—
एक शांत आशा, सुबह नहीं,
न गलियों का शोर, न हॉर्न की गूँज कहीं।उसकी सुबह प्रेम में बसी,
शांति की धारा, मन की कसी,
न सूरज की किरण, न भीड़ का मेल,
समृद्धि खिले, सपनों के खेल।
शांति फैले, एक कोमल साथ,
सुकून लपेटे, डर जाए मात।फिर अचानक चिंगारी—विचार जगा,
“चलना बुनता है अनकहा मगा।
आशा का पीछा, दिल का सितारा,
हार मानना मूर्खता, रास्ता किनारा।
हर कदम धागा, चाहे छाया घने,
शांति तक ले जाए, जो कभी न थमे।”
और वहीं सत्य खुला सामने—
प्रेम है सुकून, जो सजा संसार से।

अकेला कमल

कमलनाथ चारपाई पर बैठे हुए गहरी सोच में डूबे थे। घर में हलचल थी, मेहमान आने वाले थे, रानी का जन्मदिन जो था। लेकिन कमलनाथ की दुनिया उस चारपाई के दायरे से आगे नहीं बढ़ पा रही थी।

रानी उन्हें देख रही थी। उसने महसूस किया कि उसके पिता कुछ बदले-बदले से लग रहे हैं। उसने धीरे से पास जाकर कहा—

"पापा, अगर बदलाव आपको इतना कठिन लगता है, तो क्यों ना हम इसे छोटे-छोटे कदमों में करें?"

कमलनाथ मुस्कुराए, लेकिन उनकी मुस्कान में हल्का सा संकोच था। वह जानते थे कि रानी की बातें सीधी और सच्ची थीं। लेकिन क्या इतने सालों की आदतें इतनी आसानी से बदल सकती हैं?

रात को जब सारे मेहमान चले गए और घर में शांति थी, तब कमलनाथ अकेले बैठे रहे। सुधा उनके पास आई और बोली—

"क्या सोच रहे हैं?"
कमलनाथ ने लंबी सांस ली और कहा—

"रानी सच कहती है, सुधा। मैं सालों से इस चारपाई पर बैठा दुनिया देख रहा हूँ, लेकिन खुद कभी नहीं बदला। मैं हमेशा यही मानता रहा कि जिंदगी बहाव में चल रही है, फिर बदलाव क्यों लाऊं? लेकिन आज मुझे लग रहा है कि शायद यही मेरी सबसे बड़ी भूल थी।"

सुधा मुस्कुराई—

"समय के साथ बदलना ज़रूरी है, कमल। वरना जीवन ठहर जाता है।"

कमलनाथ ने चारपाई को देखा, उसे छुआ और जैसे बीते सालों को महसूस किया। फिर उन्होंने एक ठहराव भरी आवाज़ में कहा—

"कल सुबह पहली चीज़, इस चारपाई को हटा देंगे।"

सुधा ने चौंककर उनकी ओर देखा।

"सच में?"

कमलनाथ मुस्कुरा दिए—

"हाँ, बदलाव की शुरुआत कहीं से तो करनी ही होगी!"

अगली सुबह, जब रानी उठी, तो उसने देखा कि आंगन में रखी पुरानी चारपाई हटाई जा रही थी। वह भागकर पिता के पास आई और उनकी आँखों में देखा।

कमलनाथ ने उसकी ओर देखा और मुस्कुराते हुए कहा—

"आज पहला कदम उठा लिया, बेटा। आगे की राह तुम्हारे साथ तय करेंगे!"

रानी की आँखें चमक उठीं।

कमलनाथ अकेले नहीं थे, अब उनके साथ उनकी बेटी और एक नया सफर था—बदलाव की ओर!


“मौन उदासी का चाँद” The Moon of Silent Sorrow

Hindi  सब तरफ अँधेरा हो जाए और सब कुछ उदासी से भरा हो, चाँद हो मगर उदासी से भरा हुआ, नींद हो मगर किसी उदासी से भारी, और दिल... वो भी चुपचाप ...