Saturday, June 26, 2021

फ़ूलों की तारीफ़💬

ना कोई बंधन ना कोई दीवार ये 
फूल हैं जो दिल के पास है 
जो बार बार खिलता है 
और खूबसूरत सुबह कि तारीफ़ संजोता हैं 
जो किसी रोशनी की तलाश तो ज़रूर कारत 
मगर वो कोई और नहीं उसका वही प्यार है 
और जो हर दम उसके ख्वाबों में  आता
जाने क्यु कवि को ख्याल आया कि कहीं वो 
तलाश सूरज तो नहीं 
जो उसको हरदम नया जीवनदान देता है 

Tuesday, June 22, 2021

बड़े दिनों की तरह

आज (अदिति) से काफी दिनो बाद मिला 
वो कहीं खोई हुई मिली, मानो वो मेरा ही इंतजार कर रही थी और जब वह मुझको देखी तो 
गुस्से में आकर मुझे रूखी रूखी नज़र
आने लगी कभी उधर मूक करती तो कभी इधर 
मालूम वो कुछ सवालों का ढेर लिए बैठी थी 
कि इतने दिन कहा थे मेरी याद नहीं आयी तुमको 
तभी रुकते रुकते बोल ही दी उसके आखों में नमी मानो वो मुझको कोसती हो कि क्यु तुम आए नहीं मिलने........

उसको देख कर मानो मुझको ऐसा लगता वो कितनी खूबसूरत है जब वो गुस्से में दिखती 
आपको यकीन नहीं होगा भरोसा करो वो 
बहुत खूबसूरत है 

आज मै सोचा उससे मिलके अपने दिल के किस्से एक काग़ज़ में लिख कर उसको दे दु 

Monday, June 21, 2021

इश्क का पाठ

क्या पता था, 
 की आज तुमसे इतना इश्क़ हो जाने वाला है  की
 कलम उठते ही तेरे  इश्क़ कि तारीफ़ लिख डालूँ  । तेरी नजरो कि दीदार तो हर रोज़ करने का दिल करे  मगर
 इस दीदार को रोज देखने से डरता हू कहीं ये इश्क ना काम पड़ जाये 
Saurabh Sahai 

Critical Thinking..

You done well, what you done by your own mind
But you don’t (done) well what you think or Done by other stereotypes mind…

किसी और से मगर अब अकेले खड़ा हूँ

वो कलम से लिखतीं मगर भूल जती है
एक पल के लिये वो कोई और नही अकेले दबोची हुई नामुमकिं है
जिसका आज और कल किसी और ने सजोया है
जिसके बनाये गये लकीरों में जीवन का लक्ष्य तलास रही है

वोही सपनें जिसको जीना उसको नही उसके अंगों से निकले तनो को है।

लेकिन वो तने आज बड़े हो रहे है , ये भी समझ रहे है
धरती की ताकत को, हवाओं के झटकों को
मा के सहारे तो वो टिके है
जो उसको सहारा दिया वो भी
पानी खाद देना चाहता नही
अब ,
उसको अकेले ही धरती के
अच्छे-बुरे रुप का सामना करना है

वो आज मुर्झाई हुई लग रही
है लगता है उसके हिस्से पे कोई और वृक्ष का रोपण हुआ है
वो भी फलदार वृक्ष का
मुझे डर है की कही इसको
उखाड़ फेंकने की साजीस तो
नही चल रही
जिस वृक्ष का रोपण इतने नजाकत के साथ हुआ उसको कोई कैसे काट सकता है
मै भी नही यकिन कर सकता

कुछ दिन बाद येही हुआ जिसका यकिन ना था
पानी देना बंद था ही अब
उसको उखाड़ फेका गया
मगत भाग्य को कौन रोक सकता है ,
उसको दुबार उगने के लिये जरिया मिल गया जहा फेका गया वहा जल और प्रकाश की कमी ना है

फिर से उदित होने लगी
अब किसी का डर नही है उसको ,
उसके तने भी मजबुत हो चुके हैं वो डट कर मुकाबला करेगे धरती की बुरी ताकत का


हार मान गया
तो जीत का मज़ा कोई
और ले गया
तुम रुको नहीं हार से  ,

कल तुमको ये
जीत का जश्न दिलाएगा
ये हार तुमको जीत का जश्न
बताएगा आज
उसको तुम आज सिखों
रूठ कर बैठें रहने से क्या
जीत के रास्ते नजर
आयेगे,  नहीं

मन दुःखी ना करो
आज
कल तो तुम्हारा ही हैं
आज किसी और का सही
बस हार ना मानो आज
कल तो तुम्हारा ही है


देखो तुम आये

तुम कुछ हो नहीं ये जान लो
तुम समझना भी नहीं की तुम हो
ये काया हैं तुम्हारा
जो तुमको आक्रोशित
कर रहा ,
आज या काल या अब और अभी या कभी भी,

ये काया तुमको एक दम खाली कर देगा
तुम जो हो ये जनों
हक़ीक़त से आज तुम मुहब्बत करो ।
क्यों कि कोई नहीं जान सकता काल की बात

खाली विचार

सब खाली-खाली सा है

आँखों के सामने
सब कुछ काली रात की
तरह सूनसान।

बगल में कुछ यादों को दबाए हुए,
ना जाने उनमें दुःखों का भार अधिक है
या सुखों का।
काश कोई इसका मोल कर पाता।

आज अकेले वो,
किस प्रकार काली रात को
जगाने की कोशिश कर रहा है।
उसे पता है
वह अकेला है,
मगर किसी की तलाश या पुकारना
अब भी नहीं छोड़ा।

मगर उसे इसकी क्या जरूरत?
अगर किसी के आने से उजाला
उत्पन्न हो जाता,
तो आज इतना अंधेरा ही क्यों होता?

जो वो उस अंधेरे से
खेल रहा है।


तस्वीरें या यादें

इस तस्वीरें में रखा क्या है
जो तु देखा नहीं
यादों में वो रखा है
जो कभी संजोता नहीं
याद कर उस दिन को
जो कभी तू रोता था
और कोई नहीं आता पास
मगर उसकी तलाश उसको
तेरे पास ले आती थी
और उसकी एक मुस्कान तुझे देख
कर  यादों को तस्वीरें से बेदखल कर देती

“मौन उदासी का चाँद” The Moon of Silent Sorrow

Hindi  सब तरफ अँधेरा हो जाए और सब कुछ उदासी से भरा हो, चाँद हो मगर उदासी से भरा हुआ, नींद हो मगर किसी उदासी से भारी, और दिल... वो भी चुपचाप ...